अल-अक्सा मस्जिद: Difference between revisions

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'''मस्जिद अल-अक्सा (Al Aqsa Masjid)''' यरूशलम के अल कुद्स में स्थित है यह हमारे लिए मक्का और मदीना शरीफ के बाद तीसरी सबसे अहम है। यरूशलम पैगंबर मुहम्मद (S.A.W.) के जीवनकाल के दौरान और उनकी मृत्यु के तुरंत बाद के वर्षों के दौरान एक दूरदर्शी प्रतीक रहा जैसा कि मुस्लिमों ने इराक और उसके बाद सीरिया को नियंत्रित किया लेकिन यरुशलम 640 ईस्वी के दशक में मुस्लिमों के नियन्त्रण आया था, जिसके बाद यरूशलम एक मुस्लिम शहर बन गया और यरूशलम में अल अक्सा मस्जिद मुस्लिम साम्राज्य में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक बनी। यह मस्जिद हमेशा से विवादित रही है क्योंकि यहूदी लोग इसे अपने मंदिर होने का दावा करते हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 957 ईशा पूर्व में यहूदीयों ने यरूशलम में पहला यहूदी मंदिर बनाया था और उसके बाद 352 ईशा पूर्व में दूसरा यहूदी मंदिर बनावाया। इसके बाद 561 ईश्वीं में ईसाइयों ने यरूशलम में ही सेंट मेरी चर्च का निर्माण किया। मुश्लिमों एक जिसे 'डोम आॅफ द रोक्स'(dome of the rocks) के नाम से जाना जाता है। इसके बाद 702 ईश्वीं में मुस्लिमों ने 'मस्जिद अल-अक्सा'का निर्माण कराया और तब से लेकर अब तक यहूदी इसी 'मस्जिद अल-अक्सा'की पश्चिमी दिवार को पूजते हैं जिसे 352 ईशा पूर्व में बनाया गया था। तब से ही मस्जिद अल- अक्सा और यरूसलम यहूदी और मुसलमानों के लिए संघर्ष स्थल रहा है। मुस्लिम, ईसाई और यहूदी सभी के साथ मस्जिद के नीचे की जमीन को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है, जिस कारण इस जमीन के इतिहास को समझने का महत्त्व अत्यंत महत्वपूर्ण है।
'''मस्जिद अल-अक्सा (Al Aqsa Masjid)''' यरूशलम के अल कुद्स में स्थित है यह हमारे लिए मक्का और मदीना शरीफ के बाद तीसरी सबसे अहम है। यरूशलम पैगंबर मुहम्मद (S.A.W.) के जीवनकाल के दौरान और उनकी मृत्यु के तुरंत बाद के वर्षों के दौरान एक दूरदर्शी प्रतीक रहा जैसा कि मुस्लिमों ने इराक और उसके बाद सीरिया को नियंत्रित किया लेकिन यरुशलम 640 ईस्वी के दशक में मुस्लिमों के नियन्त्रण आया था, जिसके बाद यरूशलम एक मुस्लिम शहर बन गया और यरूशलम में अल अक्सा मस्जिद मुस्लिम साम्राज्य में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक बनी। यह मस्जिद हमेशा से विवादित रही है क्योंकि यहूदी लोग इसे अपने मंदिर होने का दावा करते हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 957 ईशा पूर्व में यहूदीयों ने यरूशलम में पहला यहूदी मंदिर बनाया था और उसके बाद 352 ईशा पूर्व में दूसरा यहूदी मंदिर बनावाया। इसके बाद 561 ईश्वीं में ईसाइयों ने यरूशलम में ही सेंट मेरी चर्च का निर्माण किया। मुश्लिमों एक जिसे 'डोम आॅफ द रोक्स'(dome of the rocks) के नाम से जाना जाता है। इसके बाद 702 ईश्वीं में मुस्लिमों ने 'मस्जिद अल-अक्सा'का निर्माण कराया और तब से लेकर अब तक यहूदी इसी 'मस्जिद अल-अक्सा'की पश्चिमी दिवार को पूजते हैं जिसे 352 ईशा पूर्व में बनाया गया था। तब से ही मस्जिद अल- अक्सा और यरूसलम यहूदी और मुसलमानों के लिए संघर्ष स्थल रहा है। मुस्लिम, ईसाई और यहूदी सभी के साथ मस्जिद के नीचे की जमीन को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है, जिस कारण इस जमीन के इतिहास को समझने का महत्त्व अत्यंत महत्वपूर्ण है।

Latest revision as of 22:59, 14 October 2023

अल अक्सा मस्जिद की तस्वीर फ़लस्तीन
अल अक्सा मस्जिद की तस्वीर फ़लस्तीन

मस्जिद अल-अक्सा (Al Aqsa Masjid) यरूशलम के अल कुद्स में स्थित है यह हमारे लिए मक्का और मदीना शरीफ के बाद तीसरी सबसे अहम है। यरूशलम पैगंबर मुहम्मद (S.A.W.) के जीवनकाल के दौरान और उनकी मृत्यु के तुरंत बाद के वर्षों के दौरान एक दूरदर्शी प्रतीक रहा जैसा कि मुस्लिमों ने इराक और उसके बाद सीरिया को नियंत्रित किया लेकिन यरुशलम 640 ईस्वी के दशक में मुस्लिमों के नियन्त्रण आया था, जिसके बाद यरूशलम एक मुस्लिम शहर बन गया और यरूशलम में अल अक्सा मस्जिद मुस्लिम साम्राज्य में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक बनी। यह मस्जिद हमेशा से विवादित रही है क्योंकि यहूदी लोग इसे अपने मंदिर होने का दावा करते हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 957 ईशा पूर्व में यहूदीयों ने यरूशलम में पहला यहूदी मंदिर बनाया था और उसके बाद 352 ईशा पूर्व में दूसरा यहूदी मंदिर बनावाया। इसके बाद 561 ईश्वीं में ईसाइयों ने यरूशलम में ही सेंट मेरी चर्च का निर्माण किया। मुश्लिमों एक जिसे 'डोम आॅफ द रोक्स'(dome of the rocks) के नाम से जाना जाता है। इसके बाद 702 ईश्वीं में मुस्लिमों ने 'मस्जिद अल-अक्सा'का निर्माण कराया और तब से लेकर अब तक यहूदी इसी 'मस्जिद अल-अक्सा'की पश्चिमी दिवार को पूजते हैं जिसे 352 ईशा पूर्व में बनाया गया था। तब से ही मस्जिद अल- अक्सा और यरूसलम यहूदी और मुसलमानों के लिए संघर्ष स्थल रहा है। मुस्लिम, ईसाई और यहूदी सभी के साथ मस्जिद के नीचे की जमीन को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है, जिस कारण इस जमीन के इतिहास को समझने का महत्त्व अत्यंत महत्वपूर्ण है।