Editing बुर्राक़

From Ummat e Muslima
Warning: You are not logged in. Your IP address will be publicly visible if you make any edits. If you log in or create an account, your edits will be attributed to your username, along with other benefits.

The edit can be undone. Please check the comparison below to verify that this is what you want to do, and then publish the changes below to finish undoing the edit.

Latest revision Your text
Line 1: Line 1:
हम सब जानते हैं कि [[Muhammad Mustafa Sallallahu Alaihi Wasallam|आप (स)]] को मस्जिदे अक़्सा की तरफ़ बुर्राक़ (Buraq)  की मदद से ले जाया गया था! यहाँ पर बुर्राक़ का मतलब है बिजली, नूर या रौशनी से है! बुर्राक़ की ख़ास बात यह थी कि यह सवारी रौशनी से भी ज़ियादा तेज़ रफ़्तार से हरकत कर सकती थी! मगर यहाँ एक बहुत ही बड़ा मसला दरपेश आता है वह यह कि नज़रिया-ए-इज़ाफ़ियत (Theory of Relativity) के मुताबिक़ हमारे fourth डायमेंशन वाली दुनियाँ में कोई भी शै रौशनी की रफ़्तार से तेज़ हरकत नहीं कर सकती है यानी कि नज़रिया-ए-इज़ाफ़ियत के मुताबिक़ रफ़्तार की आख़िरी हद रौशनी की रफ़्तार है जो कि तीन लाख किलोमीटर फ़ी सेकण्ड है! तो क्या यहाँ हमारी इस तहक़ीक़ में कुछ missing है यानी कि क्या अब हम इस वाक़िये को आगे explain नहीं कर सकते? क्या बुर्राक़ की रफ़्तार रौशनी से तेज़ नहीं थी? आइए दोस्तों! इस मसले का हल निकालते हैं कि आया हमारी क़ाएनात में महज़ रौशनी की रफ़्तार ही रफ़्तार की आख़िरी हद है या इसकी हद से तजावुज़ किया जा सकता है? इस पेचीदगी से भरी क़ाएनात में कई ऐसी तब्दीलियाँ रूकू पज़ीर हो रही हैं जो रौशनी से भी ज़ियादा तेज़ हैं! साइंसदानों को इस बात के सबूत मिलने लगे हैं कि रौशनी की रफ़्तार से ज़ियादा तेज़ रफ़्तार मुम्किन है! यानी कि अब इस बात में कोई हैरानगी नहीं कि बुर्राक़ की रफ़्तार रौशनी से भी ज़ियादा तेज़ रही होगी! स्ट्रिंग थ्योरी भी ऐसे पार्टिकल्स का ज़िक्र करती है जो रौशनी से भी ज़ियादा तेज़ हरकत कर सकते हैं और इस पार्टकिल का नाम है टैकीऑन! इससे यह बात ज़ाहिर होती है कि बुर्राक़ की रफ़्तार बहुत ज़ियादा तेज़ थी और आप (स) को यह मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़्सा की तरफ़ ले गई! दोस्तों अगर हम अब हाल की दुनियां की तरफ़ रुजू करें तो बात सामने आती है कि मस्जिदे अक़्सा और मस्जिदे हराम का फ़ासला 1461 किलोमीटर है जो कि बहुत ही ज़ियादा है और अगर फ़ासले को एक गाड़ी से तय करें तो हमे तक़रीबन 16 घण्टे दरकार होंगे और अगर हम गाड़ी के बजाएं इसी फ़ासले को जहाज़ से तय करें तो हमें तक़रीबन 2 या 3 घंटे दरकार होंगे! यानी कि जैसे जैसे हम रफ़्तार बढ़ाते चले जायेंगे वैसे वैसे वक़्त भी कम होता जा रहा है! आइये दोस्तों! अब कि सादा फ़ार्मूला की मदद लेते हैं जो कि आपने भी कभी पढ़ा होगा S = V X T. यानी फ़ासला बराबर है रफ़्तार ज़र्बे वक़्त! दोस्तों हमने यह तो जाना कि एक मामूली गाड़ी 1461 किलोमीटर के फ़ासले के लिहाज़ से 16 घण्टे में मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़्सा पहुंचेगी! लेकिन हमारा यहाँ वास्ता मामूली रफ़्तार से नहीं बल्कि तसव्वुर की जाने वाली रफ़्तार से भी ज़ियादा रफ़्तार से है! यानी फ़ासला 1461 किलोमीटर तो है लेकिन रफ़्तार तीन लाख किलोमीटर फी सेकंड है और अब अगर हम इस फ़ासले और रफ़्तार को तक़सीम करके वक़्त निकालें तो यह 0.00487 सेकंड के क़रीब आता है जो कि वक़्त की बहुत ही ज़ियादा क़लील मिक़दार है! अब तसव्वुर कीजिये तो वह बुर्राक़ जो रौशनी से भी ज़ियादा तेज़ थी इसे कितना वक़्त लगा होगा यह फ़ासला तय करने में लेकिन अगर रौशनी ही यह फ़ासला इतने क़लील वक़्त में तय करवा सकती है तो बहस क्यों हो रही है कि बुर्राक़ की रफ़्तार रौशनी से ज़ियादा तेज़ थी?
हम सब जानते हैं कि [[Muhammad|आप (स)]] को मस्जिदे अक़्सा की तरफ़ बुर्राक़ (Buraq)  की मदद से ले जाया गया था! यहाँ पर बुर्राक़ का मतलब है बिजली, नूर या रौशनी से है! बुर्राक़ की ख़ास बात यह थी कि यह सवारी रौशनी से भी ज़ियादा तेज़ रफ़्तार से हरकत कर सकती थी! मगर यहाँ एक बहुत ही बड़ा मसला दरपेश आता है वह यह कि नज़रिया-ए-इज़ाफ़ियत (Theory of Relativity) के मुताबिक़ हमारे fourth डायमेंशन वाली दुनियाँ में कोई भी शै रौशनी की रफ़्तार से तेज़ हरकत नहीं कर सकती है यानी कि नज़रिया-ए-इज़ाफ़ियत के मुताबिक़ रफ़्तार की आख़िरी हद रौशनी की रफ़्तार है जो कि तीन लाख किलोमीटर फ़ी सेकण्ड है! तो क्या यहाँ हमारी इस तहक़ीक़ में कुछ missing है यानी कि क्या अब हम इस वाक़िये को आगे explain नहीं कर सकते? क्या बुर्राक़ की रफ़्तार रौशनी से तेज़ नहीं थी? आइए दोस्तों! इस मसले का हल निकालते हैं कि आया हमारी क़ाएनात में महज़ रौशनी की रफ़्तार ही रफ़्तार की आख़िरी हद है या इसकी हद से तजावुज़ किया जा सकता है? इस पेचीदगी से भरी क़ाएनात में कई ऐसी तब्दीलियाँ रूकू पज़ीर हो रही हैं जो रौशनी से भी ज़ियादा तेज़ हैं! साइंसदानों को इस बात के सबूत मिलने लगे हैं कि रौशनी की रफ़्तार से ज़ियादा तेज़ रफ़्तार मुम्किन है! यानी कि अब इस बात में कोई हैरानगी नहीं कि बुर्राक़ की रफ़्तार रौशनी से भी ज़ियादा तेज़ रही होगी! स्ट्रिंग थ्योरी भी ऐसे पार्टिकल्स का ज़िक्र करती है जो रौशनी से भी ज़ियादा तेज़ हरकत कर सकते हैं और इस पार्टकिल का नाम है टैकीऑन! इससे यह बात ज़ाहिर होती है कि बुर्राक़ की रफ़्तार बहुत ज़ियादा तेज़ थी और आप (स) को यह मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़्सा की तरफ़ ले गई! दोस्तों अगर हम अब हाल की दुनियां की तरफ़ रुजू करें तो बात सामने आती है कि मस्जिदे अक़्सा और मस्जिदे हराम का फ़ासला 1461 किलोमीटर है जो कि बहुत ही ज़ियादा है और अगर फ़ासले को एक गाड़ी से तय करें तो हमे तक़रीबन 16 घण्टे दरकार होंगे और अगर हम गाड़ी के बजाएं इसी फ़ासले को जहाज़ से तय करें तो हमें तक़रीबन 2 या 3 घंटे दरकार होंगे! यानी कि जैसे जैसे हम रफ़्तार बढ़ाते चले जायेंगे वैसे वैसे वक़्त भी कम होता जा रहा है! आइये दोस्तों! अब कि सादा फ़ार्मूला की मदद लेते हैं जो कि आपने भी कभी पढ़ा होगा S = V X T. यानी फ़ासला बराबर है रफ़्तार ज़र्बे वक़्त! दोस्तों हमने यह तो जाना कि एक मामूली गाड़ी 1461 किलोमीटर के फ़ासले के लिहाज़ से 16 घण्टे में मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़्सा पहुंचेगी! लेकिन हमारा यहाँ वास्ता मामूली रफ़्तार से नहीं बल्कि तसव्वुर की जाने वाली रफ़्तार से भी ज़ियादा रफ़्तार से है! यानी फ़ासला 1461 किलोमीटर तो है लेकिन रफ़्तार तीन लाख किलोमीटर फी सेकंड है और अब अगर हम इस फ़ासले और रफ़्तार को तक़सीम करके वक़्त निकालें तो यह 0.00487 सेकंड के क़रीब आता है जो कि वक़्त की बहुत ही ज़ियादा क़लील मिक़दार है! अब तसव्वुर कीजिये तो वह बुर्राक़ जो रौशनी से भी ज़ियादा तेज़ थी इसे कितना वक़्त लगा होगा यह फ़ासला तय करने में लेकिन अगर रौशनी ही यह फ़ासला इतने क़लील वक़्त में तय करवा सकती है तो बहस क्यों हो रही है कि बुर्राक़ की रफ़्तार रौशनी से ज़ियादा तेज़ थी?


आइए इसे भी जान लेते हैं! अगर हम बुर्राक़ की रफ़्तार को रौशनी की रफ़्तार तसव्वुर करके चलें तो यहाँ थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी हमारे सामने एक बार फिर एक बड़ा मसला पेश करती है जबकि इसी मसले को मुख़्तलिफ़ websites और स्कॉलर्स शबे मेराज का हल बताते हैं जो कि बिल्कुल ग़लत है! थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी के मुताबिक़ अगर कोई मफ़ऊल रौशनी की रफ़्तार के 99 फ़ीसद से हरकत करने लगे तो इसके लिए वक़्त आहिस्ता हो जाता है जबकि गिर्द व नवाँ का वक़्त तेज़ हो जाता है यानि एक जहाज़ 99.99 फ़ीसद या रौशनी की रफ़्तार की ऐन बराबर हरकत करने लगे तो इसके लिए वक़्त बहुत आहिस्ता हो जायेगा बनिस्बत इसके गिर्द व नवां कि और अगर यह जहाज़ इसी रफ़्तार से हरकत करता रहे तो ज़मीन पर एक हफ़्ता गुज़र जायेगा! जबकि जहाज़ के अंदर महज़ 24 घाटे गुज़रे होंगे! यानी रौशनी की रफ़्तार से हरकत करते हुए जहाज़ के लिए वक़्त आहिस्ता होगा न की गिर्द व नवाँ का लेकिन अगर हम इसी उसूल को मेराज-उन-नबी (स) पर लागू करें तो इसका मतलब बुर्राक़ की रफ़्तार अगर रौशनी की रफ़्तार के बराबर थी तो आप (स) के लिए वक़्त आहिस्ता होना चाहिए था! जबकि ज़मीन का वक़्त तेज़ होना चाहिए था! लेकिन हक़ीक़तन ऐसा नहीं बल्कि मामला इसके बरअक्स है यानी आप हुज़ूर (स) के लिए वक़्त चलता रहा जबकि गिर्द व नवाँ का वक़्त रुक चुका था! यानी आप हुज़ूर (स) ने वक़्त की इन्तेहाई क़लील मिक़दार में यह सैर और सफ़र मुकम्मल किया! लिहाज़ा थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी यहाँ एक बार फिर रुकावट पैदा करती है! जो कि यह कि रौशनी की रफ़्तार से हरकत करता मफ़ऊल वक़्त को अपने लिए आहिस्ता महसूस करता है लेकिन मेरे अज़ीज़ दोस्तों! आप के इल्म में इज़ाफ़े के लिए अर्ज़ है कि इसी उसूल को तोड़ने आइए इसे भी जान लेते हैं!  
आइए इसे भी जान लेते हैं! अगर हम बुर्राक़ की रफ़्तार को रौशनी की रफ़्तार तसव्वुर करके चलें तो यहाँ थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी हमारे सामने एक बार फिर एक बड़ा मसला पेश करती है जबकि इसी मसले को मुख़्तलिफ़ websites और स्कॉलर्स शबे मेराज का हल बताते हैं जो कि बिल्कुल ग़लत है! थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी के मुताबिक़ अगर कोई मफ़ऊल रौशनी की रफ़्तार के 99 फ़ीसद से हरकत करने लगे तो इसके लिए वक़्त आहिस्ता हो जाता है जबकि गिर्द व नवाँ का वक़्त तेज़ हो जाता है यानि एक जहाज़ 99.99 फ़ीसद या रौशनी की रफ़्तार की ऐन बराबर हरकत करने लगे तो इसके लिए वक़्त बहुत आहिस्ता हो जायेगा बनिस्बत इसके गिर्द व नवां कि और अगर यह जहाज़ इसी रफ़्तार से हरकत करता रहे तो ज़मीन पर एक हफ़्ता गुज़र जायेगा! जबकि जहाज़ के अंदर महज़ 24 घाटे गुज़रे होंगे! यानी रौशनी की रफ़्तार से हरकत करते हुए जहाज़ के लिए वक़्त आहिस्ता होगा न की गिर्द व नवाँ का लेकिन अगर हम इसी उसूल को मेराज-उन-नबी (स) पर लागू करें तो इसका मतलब बुर्राक़ की रफ़्तार अगर रौशनी की रफ़्तार के बराबर थी तो आप (स) के लिए वक़्त आहिस्ता होना चाहिए था! जबकि ज़मीन का वक़्त तेज़ होना चाहिए था! लेकिन हक़ीक़तन ऐसा नहीं बल्कि मामला इसके बरअक्स है यानी आप हुज़ूर (स) के लिए वक़्त चलता रहा जबकि गिर्द व नवाँ का वक़्त रुक चुका था! यानी आप हुज़ूर (स) ने वक़्त की इन्तेहाई क़लील मिक़दार में यह सैर और सफ़र मुकम्मल किया! लिहाज़ा थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी यहाँ एक बार फिर रुकावट पैदा करती है! जो कि यह कि रौशनी की रफ़्तार से हरकत करता मफ़ऊल वक़्त को अपने लिए आहिस्ता महसूस करता है लेकिन मेरे अज़ीज़ दोस्तों! आप के इल्म में इज़ाफ़े के लिए अर्ज़ है कि इसी उसूल को तोड़ने आइए इसे भी जान लेते हैं!  


अगर हम बुर्राक़ की रफ़्तार को रौशनी की रफ़्तार तसव्वुर करके चलें तो यहाँ थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी हमारे सामने एक बार फिर एक बड़ा मसला पेश करती है जबकि इसी मसले को मुख़्तलिफ़ websites और स्कॉलर्स शबे मेराज का हल बताते हैं जो कि बिल्कुल ग़लत है! थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी के मुताबिक़ अगर कोई मफ़ऊल रौशनी की रफ़्तार के 99 फ़ीसद से हरकत करने लगे तो इसके लिए वक़्त आहिस्ता हो जाता है जबकि गिर्द व नवाँ का वक़्त तेज़ हो जाता है यानि एक जहाज़ 99.99 फ़ीसद या रौशनी की रफ़्तार की ऐन बराबर हरकत करने लगे तो इसके लिए वक़्त बहुत आहिस्ता हो जायेगा बनिस्बत इसके गिर्द व नवां कि और अगर यह जहाज़ इसी रफ़्तार से हरकत करता रहे तो ज़मीन पर एक हफ़्ता गुज़र जायेगा! जबकि जहाज़ के अंदर महज़ 24 घाटे गुज़रे होंगे! यानी रौशनी की रफ़्तार से हरकत करते हुए जहाज़ के लिए वक़्त आहिस्ता होगा न की गिर्द व नवाँ का लेकिन अगर हम इसी उसूल को मेराज-उन-नबी (स) पर लागू करें तो इसका मतलब बुर्राक़ की रफ़्तार अगर रौशनी की रफ़्तार के बराबर थी तो आप (स) के लिए वक़्त आहिस्ता होना चाहिए था! जबकि ज़मीन का वक़्त तेज़ होना चाहिए था! लेकिन हक़ीक़तन ऐसा नहीं बल्कि मामला इसके बरअक्स है यानी आप हुज़ूर (स) के लिए वक़्त चलता रहा जबकि गिर्द व नवाँ का वक़्त रुक चुका था! यानी आप हुज़ूर (स) ने वक़्त की इन्तेहाई क़लील मिक़दार में यह सैर और सफ़र मुकम्मल किया! लिहाज़ा थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी यहाँ एक बार फिर रुकावट पैदा करती है! जो कि यह कि रौशनी की रफ़्तार से हरकत करता मफ़ऊल वक़्त को अपने लिए आहिस्ता महसूस करता है लेकिन मेरे अज़ीज़के लिए बुर्राक़ की रफ़्तार को रौशनी की रफ़्तार से तेज़ रखा गया था! क्योंकि थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी उसी वक़्त लागू होती है जब कि ऑब्जेक्ट रौशनी की रफ़्तार या इसके 99 फ़ीसद रफ़्तार तक हरकत करे! चूँकि दोस्तों बुर्राक़ की रफ़्तार रौशनी से ज़ियादा थी इसलिए अब यहाँ नजरिया-ए-इज़ाफ़ियत लागू नहीं कर सकते यानी इस मर्तबा नज़रिया-ए-इज़ाफ़ियत के मुताबिक़ वक़्त न तो आप हुज़ूर (स) आहिस्ता होगा और न ही गिर्द व नवाँ के लिए! लेहाज़ा हम तसव्वुर कर सकते हैं कि बुर्राक़ की रफ़्तार रौशनी की रफ़्तार का दोगुना है जोकि 6 लाख किलोमीटर फ़ी सेकंड है और अगर हिसाब से मस्जिदे हराम और मस्जिदे अक़्सा के दरमियान दरकार वक़्त निकालें तो जवाब 0.002435 सेकंड आएगा! लिहाज़ा दोस्तों! इससे हम यह अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आप हुज़ूर (स) को मस्जिदे अक़्सा तक पहुँचने में महज़ 0.002435 सेकंड का वक़्त लगा होगा! लेकिन मैं यहाँ पर थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी को ध्यान में रखते हुए बुर्राक़ की रफ़्तार को रौशनी की रफ़्तार के बराबर मान रहा हूँ जिसके हिसाब से बुर्राक़ को मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़्सा तक पहुँचने में महज़ 0.00487 सेकण्ड लगे! जब आप हुज़ूर (स) मस्जिदे अक़्सा पहुंचे तो आप ने वहां जमात भी करवाई और फिर सात आसमानों का सफ़र भी तय किया और फिर क़ाएनात के इख़्तेतामी मुक़ाम सिदरतुल मुंतहा भी पहुंचे और दोस्तों अगर हम यही मानें कि बुर्राक़ की रफ़्तार रौशनी की दोगुना थी तो फिर भी बुर्राक़ को सिदरतुल मुंतहा पहुँचने में अरबों साल दरकार होंगे! क्योंकि दोस्तों इस लिहाज़ से बुर्राक़ को सूरज तक पहुँचने में 8 मिनट लगेंगे जो की सिदरतुल मुंतहा के मुक़ाबले ज़मीन के बहुत नज़दीक है! इसकी वजह यह है कि सूरज से ज़मीन तक रौशनी पहुँचने में 8 मिनट से कुछ ज़ियादा का वक़्त लेती है और इसी लिहाज़ से बुर्राक़ भी 8 मिनट लेगी! लिहाज़ा सिदरतुल मुंतहा जो कि खरबों खरबों नूरी साल या तसव्वुर की जाने वाली किसी भी दूरी से भी ज़ियादा नूरी साल दूर है वहाँ बुर्राक़ को जाने में कई अरबों साल दरकार होंगे जबकि आप हुज़ूर (स) ने यह सफ़र पलक झपकते ही तय कर लिया लिहाज़ा अभी भी सवाल बहुत बाक़ी हैं! अगर आप हुज़ूर (स) बुर्राक़ पर ही आसमानी सफ़र करते जो आज तक भी बुर्राक़ सिदरतुल मुन्तहा तक नहीं पहुँच पाता लेकिन अल्लाह ने यही सफ़र आप हुज़ूर (स) को उसी रात के उसी सेकंड से भी कम वक़्त में मुकम्मल करवाया! आख़िर यह कैसे मुम्किन है? दोस्तों! अगर हम ग़ौर करें तो हमें मालूम होता है कि आप हुज़ूर (स) जब मस्जिदे अक़्सा उतरे तो बुर्राक़ को वहाँ बांध दिया गया था!
अगर हम बुर्राक़ की रफ़्तार को रौशनी की रफ़्तार तसव्वुर करके चलें तो यहाँ थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी हमारे सामने एक बार फिर एक बड़ा मसला पेश करती है जबकि इसी मसले को मुख़्तलिफ़ websites और स्कॉलर्स शबे मेराज का हल बताते हैं जो कि बिल्कुल ग़लत है! थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी के मुताबिक़ अगर कोई मफ़ऊल रौशनी की रफ़्तार के 99 फ़ीसद से हरकत करने लगे तो इसके लिए वक़्त आहिस्ता हो जाता है जबकि गिर्द व नवाँ का वक़्त तेज़ हो जाता है यानि एक जहाज़ 99.99 फ़ीसद या रौशनी की रफ़्तार की ऐन बराबर हरकत करने लगे तो इसके लिए वक़्त बहुत आहिस्ता हो जायेगा बनिस्बत इसके गिर्द व नवां कि और अगर यह जहाज़ इसी रफ़्तार से हरकत करता रहे तो ज़मीन पर एक हफ़्ता गुज़र जायेगा! जबकि जहाज़ के अंदर महज़ 24 घाटे गुज़रे होंगे! यानी रौशनी की रफ़्तार से हरकत करते हुए जहाज़ के लिए वक़्त आहिस्ता होगा न की गिर्द व नवाँ का लेकिन अगर हम इसी उसूल को मेराज-उन-नबी (स) पर लागू करें तो इसका मतलब बुर्राक़ की रफ़्तार अगर रौशनी की रफ़्तार के बराबर थी तो आप (स) के लिए वक़्त आहिस्ता होना चाहिए था! जबकि ज़मीन का वक़्त तेज़ होना चाहिए था! लेकिन हक़ीक़तन ऐसा नहीं बल्कि मामला इसके बरअक्स है यानी आप हुज़ूर (स) के लिए वक़्त चलता रहा जबकि गिर्द व नवाँ का वक़्त रुक चुका था! यानी आप हुज़ूर (स) ने वक़्त की इन्तेहाई क़लील मिक़दार में यह सैर और सफ़र मुकम्मल किया! लिहाज़ा थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी यहाँ एक बार फिर रुकावट पैदा करती है! जो कि यह कि रौशनी की रफ़्तार से हरकत करता मफ़ऊल वक़्त को अपने लिए आहिस्ता महसूस करता है लेकिन मेरे अज़ीज़के लिए बुर्राक़ की रफ़्तार को रौशनी की रफ़्तार से तेज़ रखा गया था! क्योंकि थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी उसी वक़्त लागू होती है जब कि ऑब्जेक्ट रौशनी की रफ़्तार या इसके 99 फ़ीसद रफ़्तार तक हरकत करे! चूँकि दोस्तों बुर्राक़ की रफ़्तार रौशनी से ज़ियादा थी इसलिए अब यहाँ नजरिया-ए-इज़ाफ़ियत लागू नहीं कर सकते यानी इस मर्तबा नज़रिया-ए-इज़ाफ़ियत के मुताबिक़ वक़्त न तो आप हुज़ूर (स) आहिस्ता होगा और न ही गिर्द व नवाँ के लिए! लेहाज़ा हम तसव्वुर कर सकते हैं कि बुर्राक़ की रफ़्तार रौशनी की रफ़्तार का दोगुना है जोकि 6 लाख किलोमीटर फ़ी सेकंड है और अगर हिसाब से मस्जिदे हराम और मस्जिदे अक़्सा के दरमियान दरकार वक़्त निकालें तो जवाब 0.002435 सेकंड आएगा! लिहाज़ा दोस्तों! इससे हम यह अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आप हुज़ूर (स) को मस्जिदे अक़्सा तक पहुँचने में महज़ 0.002435 सेकंड का वक़्त लगा होगा! लेकिन मैं यहाँ पर थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी को ध्यान में रखते हुए बुर्राक़ की रफ़्तार को रौशनी की रफ़्तार के बराबर मान रहा हूँ जिसके हिसाब से बुर्राक़ को मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़्सा तक पहुँचने में महज़ 0.00487 सेकण्ड लगे! जब आप हुज़ूर (स) मस्जिदे अक़्सा पहुंचे तो आप ने वहां जमात भी करवाई और फिर सात आसमानों का सफ़र भी तय किया और फिर क़ाएनात के इख़्तेतामी मुक़ाम सिदरतुल मुंतहा भी पहुंचे और दोस्तों अगर हम यही मानें कि बुर्राक़ की रफ़्तार रौशनी की दोगुना थी तो फिर भी बुर्राक़ को सिदरतुल मुंतहा पहुँचने में अरबों साल दरकार होंगे! क्योंकि दोस्तों इस लिहाज़ से बुर्राक़ को सूरज तक पहुँचने में 8 मिनट लगेंगे जो की सिदरतुल मुंतहा के मुक़ाबले ज़मीन के बहुत नज़दीक है! इसकी वजह यह है कि सूरज से ज़मीन तक रौशनी पहुँचने में 8 मिनट से कुछ ज़ियादा का वक़्त लेती है और इसी लिहाज़ से बुर्राक़ भी 8 मिनट लेगी! लिहाज़ा सिदरतुल मुंतहा जो कि खरबों खरबों नूरी साल या तसव्वुर की जाने वाली किसी भी दूरी से भी ज़ियादा नूरी साल दूर है वहाँ बुर्राक़ को जाने में कई अरबों साल दरकार होंगे जबकि आप हुज़ूर (स) ने यह सफ़र पलक झपकते ही तय कर लिया लिहाज़ा अभी भी सवाल बहुत बाक़ी हैं! अगर आप हुज़ूर (स) बुर्राक़ पर ही आसमानी सफ़र करते जो आज तक भी बुर्राक़ सिदरतुल मुन्तहा तक नहीं पहुँच पाता लेकिन अल्लाह ने यही सफ़र आप हुज़ूर (स) को उसी रात के उसी सेकंड से भी कम वक़्त में मुकम्मल करवाया! आख़िर यह कैसे मुम्किन है? दोस्तों! अगर हम ग़ौर करें तो हमें मालूम होता है कि आप हुज़ूर (स) जब मस्जिदे अक़्सा उतरे तो बुर्राक़ को वहाँ बांध दिया गया था!
Please note that all contributions to Ummat e Muslima are considered to be released under the All rights reserved (see Ummat e Muslima:Copyrights for details). If you do not want your writing to be edited mercilessly and redistributed at will, then do not submit it here.
You are also promising us that you wrote this yourself, or copied it from a public domain or similar free resource. Do not submit copyrighted work without permission!
Cancel Editing help (opens in new window)